वो सर्दी की एक रात
एक मोटी रज़ाई
मिली जुली गरमाहट
मन में कुछ यादों के साये
बस तेरे अक्स को समाये
कुछ उछलते सवाल
जो मैंने तूझे कभी पूछे नहीं
वो अनकही बातें
जो तूने कभी सुनी नहीं
कुछ टूटी कसमें
जो हमने साथ खाई थी
मेरी इक़रार भरी गज़लें
जो कभी मैंने तूझे सुनाई थी
वो प्रीत के गीत
जो कभी हमने गुनगुनाएँ थे
वो गुलाब के फूल
जो मैंने तेरी किताब में छुपाए थे
वो तेरी साँसे
जो मेरा कमरा महका देती थी
वो हया वो मासूमियत
जो मुझे दीवाना बना देती थी
वो तेरा बदन जैसे कचनार कली
वो तेरी आवाज़ जैसे कोयल चली
वो तेरी आँखें जैसे छैनी कटार
वो तेरी पायल की झंकार
जैसे गावे कोई मेघ-मलिहार
वो तेरे होंठ जैसे सूरा प्याला
वो तेरे ......
वो ते... तभी
कुछ दिमाग में
तमतमाहट का मौसम
"ये "तू" कौन ?? वो बेवफ़ा ????"
कुछ अज़ीब सी कशमकश
बदन , न हिले न डुले
जबान को शब्द ना मिले
"बस वो थोड़ी ज़िद्दी थी , बेवफ़ा नहीं "
दिल ने मुझे कुछ यूँ दिलासा दी
आंसुओं ने बिस्तर भिगोया
और
रात करवटों में खो गईं ||


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