" अल्फ़ाज़ - ज़ो पिरोये मनसा ने "

ज़र्रों में रह गुज़र के चमक छोड़ जाऊँगा ,
आवाज़ अपनी मैं दूर तलक छोड़ जाऊँगा |
खामोशियों की नींद गंवारा नहीं मुझे ,
शीशा हूँ टूट भी गया तो खनक छोड़ जाऊँगा||

क़यामत से मुलाक़ात.न...


नींद  में  होती  हैं , क़यामत  से  रोज़  मुलाक़ात.न  मेरी  |
ख्वाबों  में  सनम  मेरी ,  बेनकाब  जो  निकलती  हैं   || 


|| मनसा  ||




7 comments:

बहुत सुन्दर लगी...क़यामत से भी दिल्लगी

 

बहुत खूब लिखा है आपने ! लाजवाब प्रस्तुती!

 

वाह क्या बात कही है ..बहुत खूब