ज़ब कभी मैं फुर्सत के पलों में शीशा देखता हूँ |
अपने अक्स में खिलखिलाते एक बच्चे को देखता हूँ ||
एक बच्चा , जिसने बोलना सीखा था प्रथम शब्द " माँ "
जिस शब्द को समझा पाने का किसी वर्णमाला में न दम हुआ करता था ||
एक बच्चा , जब कोशिश करता क़दम धरने की ज़मीं पे
बार बार गिरते देख जिसकी माँ के दिल में कंपकंपी सा हुआ करता था ||
एक बच्चा , आंखो में काजल और हाथों में जिसे पकड़ाती थी माँ मुरली
जिसमें बसते थे प्राण ,माँ के लिए ज़ो "कान्हा" का अक्स हुआ करता था ||
एक बच्चा , क़दम पहला पड़ा था ज़मीं पें ज़ब उसका
माँ की खुशी , जैसे प्यासे को नसीब अमृतपान हुआ करता था ||
एक बच्चा , जिसे यक़ीन था मोहब्बत के अंधी होने का
उसे देखने से पहले भी माँ को उससे प्यार ज़ो हुआ करता था ||
एक बच्चा , जिसका मज़हब था सिर्फ उसकी "माँ "
माँ ही मक्का , माँ मदीना ,माँ चारों धाम हुआ करता था ||
एक बच्चा , ज़ो चूम लेता था माँ के हर कदम को मिट्टी पें
पर मिट्टी खाने की गलतफहमी में , ज़ो डांट का शिकार हुआ करता था ||
एक बच्चा , जिसे शहद और शक्कर कहते "हम हैं सबसे मीठे "
"तब तुमने मेरी माँ को नहीं देखा " ये जिसका जवाब हुआ करता था ||
एक बच्चा ,जिसे अता हैं शोहरत ए जिंदगी उस " माँ " की दुआओं की बदौलत ,
आज़ भी करता हूँ उस विधाता की ज़िंदा प्रतिमूर्ति ,परम शक्ति की साधना ज़ो मेरा मेहताब हुआ करता था ||
|| मनसा ||

27 comments:
अच्छा लगा आपकी भावनाओं को पढकर।
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सलमान से भी गये गुजरे...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
zi shukriya
बहुत सुंदर लिखा है..... आँखें नम करती पोस्ट.....
Sunder Kavita..... Maa se achcha kuchh nahin...
एक बच्चा , जिसे यक़ीन था मोहब्बत के अंधी होने का उसे देखने से पहले भी माँ को उससे प्यार ज़ो हुआ करता था ||
बहुत सुन्दर भावनाएं......... सुन्दर रचना....
aap sabhi ka bahut bahut aabhar :D
एक बेहतरीन पेशकश. इसी कल कि बगीची चर्चा पेश किया जा रहा है
bohot khoob
बहुत सुन्दर लिखा हैं आपने ...
Bahut sundar, prabhavit karti rachana.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
hausla afzai ke liye dhnyawad
एक बच्चा , आंखो में काजल और हाथों में जिसे पकड़ाती थी माँ मुरली जिसमें बसते थे प्राण ,माँ के लिए ज़ो "कान्हा" का अक्स हुआ करता था ||
bahut bhavpoorn abhivyakti.
Bahut Sundar ...
Life is Just A Life
बहुत सुन्दर भाव व वर्णन ...
बहुत सुंदर लिखा है.......... बधाई!
रक्त से अपने सींचकर, हड्डी दिहिन गलाय |
माँ के दर्शन सर्वप्रथम, मृत्य-लोक में आय ||
पाली - पोसी प्राण जस, माता सदा सहाय |
ढाई किलो का जीव यह, सत्तर का हो जiय |
bahut bahut acchha likha hai...maa aisi hi hoti hai.
खूबसूरत भावनाओं से सजी अच्छी रचना
मनीष भाई माँ को अभिव्यक्त करती एक बेहद सुन्दर कविता आपने प्रस्तुत की है...बहुत सुन्दर...
आभार...
मन को छू गये आपके जज्बात।
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भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||
http://charchamanch.blogspot.com/
A description of memoir with sacred love is appreciable .... /thank you .
bahut pyaari maa ki tarah mahaan maa ki tarah pavitra aapki kavita.bahut achcha blog laga so follow kar liya.mere blog par bhi aap aamantrit hain.
बहुत सुन्दर...बधाई
रचना चर्चा मंच पर है आज ||
मर्म स्पर्शी खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.