कमली, पर क़ातिल-कयामत सी हैं वो आँखें
सुनते हैं, मोती उनके शहर भर में कहर बरपाये बैठे हैं ||
जब से देखी हैं, मदहोश, मय-मतवाली सी वो आँखें
सुनते हैं, नशे में मयखाने तक खुद को ताला लगाए बैठे हैं ||
वो काली काली, कजरारी, काले बादल सी जो आँखें
सुनते हैं, संन्यासी तक के मन कालिख पुताये बैठे हैं ||
शबनमी, शरबती, शिउली के पानी सी वो आँखें
सुनते हैं, भँवरे हजारों इन्हें पीने को ललचाये बैठे हैं ||
पिनाकिनी, पारुली, पतझड़ में बहार सी है वो आँखें
सुनते हैं, लोग कई इन्हें जीने का सबब बनाए बैठे हैं ||
जन्नत हैं धरती पे अगर कहीं, तो बस दो जगह ,
एक तो 'मनसा' पता हैं, माँ के आँचल में ,
सुनते हैं, दुजी वो अपनी अँखियों में छुपाये बैठे हैं ||

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