" अल्फ़ाज़ - ज़ो पिरोये मनसा ने "

ज़र्रों में रह गुज़र के चमक छोड़ जाऊँगा ,
आवाज़ अपनी मैं दूर तलक छोड़ जाऊँगा |
खामोशियों की नींद गंवारा नहीं मुझे ,
शीशा हूँ टूट भी गया तो खनक छोड़ जाऊँगा||

तेरी बात और हैं ...



...यूँ तो जाम पेशगी को, हजारों मयखाने और हैं ।
पर तू जो निगाहों से पिलाएँ, तो तेरी बात और हैं ॥  


3 comments:

उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

 

वाह....
क्या बात है.....

अनु

 

पीने पिलाना बिल्कुल ठीक नहीं
बोतल से हो तब भी ठीक है
दूसरे दिन होश तो आ जाता है
आँखों से पी लिया करता है जो
जिंदगी भर का नशेड़ी हो जाता है
उसकी आँखों को पीलिया हो जाता है !