राखी के हर धागे का कर्ज़ मुझपे ,
कभी उससे न मुकर जाऊँ |
आज़ हूँ भले उससे दूर कितना ,
दिलों में कभी दूरी न मगर पाऊँ ||
न मिले प्रेम उसका,सुनी रहे कलाई
कभी ऐसी मैं न सहर पाऊँ |
प्यारी बहना जो लिखी तूने नसीब में ,
ख़ुदा हर जन्म ऐसी तेरी महर पाऊँ |
खुशियाँ मिले उसे सारे जहाँ की ,
उसके चेहरे पे हरदम खुशी की लहर चाहूँ ||
कभी छू न सके कोई दर्द उसको ,
भले बदले , मैं जहन्नुम द्वारे उतर जाऊँ ||
ऐ मौला , बस अता कर ऐसी ज़िंदगानी मुझको ,
जब भी याद करें वो मुझको ,
पास उसके मैं देता आशीष नज़र आऊँ ||