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" अल्फ़ाज़ - ज़ो पिरोये मनसा ने "
ज़र्रों में रह गुज़र के चमक छोड़ जाऊँगा ,
आवाज़ अपनी मैं दूर तलक छोड़ जाऊँगा |
खामोशियों की नींद गंवारा नहीं मुझे ,
शीशा हूँ टूट भी गया तो खनक छोड़ जाऊँगा||
तेरी बात और हैं ...
Posted by Manish Khedawat
comments (3)
...यूँ तो जाम पेशगी को, हजारों मयखाने और हैं ।
पर तू जो निगाहों से पिलाएँ, तो तेरी बात और हैं ॥
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