वो कन्धे पे बस्ता और हाथों में बोतल ले जाना |
मुझे बहुत याद आता हैं वो स्कूल का ज़माना ||
वो स्कूल जाने को रिश्वत में पापा से चॉकलेट पाना |
सुबह सुबह स्कूल जाने को मम्मी का मुझे सजाना ||
interval में बैठ कर वो लंच सबके साथ खाना |
'मेरी मम्मी के पराँठे सबसे अच्छे' सबको बताना ||
कक्षा में मुझे बातें करते देख मैडम का आंखे तिमतिमाना |
फिर girl -boy- girl sitting की हसीन पनिसमेंट पाना ||
वो पेनों की लड़ाई और हाथों से चिड़िया उड़ाना |
नोटबुक के पीछे क्रॉस v/s ज़ीरो गेम का पाया जाना ||
वही कहीं मिलती थी साइलेंट क्लास में बातों के लिए लिखाई |
दोस्त का लिखा crush का नाम ,फिर उसपे ज़ोरों से पेन घिसाई ||
आगे वाली छोरी की वो बड़े ज़ोर से चुटिया घुमाना |
रूठ भी जाए तो प्यारी सी मासूमियत से उसे मनाना ||
एक्जाम में answer same होने पे मास्टर का चिल्लाना |
"गधे सवाल भी तो same था " दिल से आवाज़ आना ||
घंटी की आवाज़ सुनते ही ज़ोर से हल्ला मचाना |
छुट्टी की घंटी पे मैडम से पहले निकल जाना ||
बारिश के दिनों में वो कश्तियों की रेस लगाना |
पत्थरों को ठोकर मारते , हाथों में हाथ लिए घर जाना ||
कभी रोते तो कभी यूँ ही हँसते मार सह जाना |
कुछ ऐसा ही बिगड़ैल था मेरे स्कूल का ज़माना ||
अब ना मिलती हैं पापा से रिश्वत , न लंच में मम्मी के पराँठे |
ना नोटबुक के गेम बचे , न पड़ती अब मैडम ज़ी की डांटे ||
पानी बदल गया बोतल का , crush भी अपना न रहा ,
वक़्त ने अब छीन लिया मुझसे वो खुशियों का खज़ाना ||
सच में जब भी पढ़ता हैं दिल हमारा अतीत पुराना |
आंखो में अश्क ला देता हैं वो स्कूल का गुज़रा ज़माना ||
|| मनसा ||