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" अल्फ़ाज़ - ज़ो पिरोये मनसा ने "
ज़र्रों में रह गुज़र के चमक छोड़ जाऊँगा ,
आवाज़ अपनी मैं दूर तलक छोड़ जाऊँगा |
खामोशियों की नींद गंवारा नहीं मुझे ,
शीशा हूँ टूट भी गया तो खनक छोड़ जाऊँगा||
भगत ऐसे, इस मिट्टी पे बड़े निराले हुआ करते हैं ।।
Posted by Manish Khedawat
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मिलेंगे यूँ तो गली गली भक्त मिटटी के पुतलों के,
पर मिट्टी की खातिर जो खुद मिट्टी मिल जायें,
भगत ऐसे, इस मिट्टी पे बड़े निराले हुआ करते हैं ।।
जन्मदिन मुबारक़ हो , शहीद ए आज़म !!
काश वजह देशभक्ति रही होती !!
Posted by Manish Khedawat
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देखता हूँ बच्चों को तिरंगा बेचते रास्तों पे,
काश वजह भूख नहीं, देशभक्ति रही होती ।।
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