"दशहरा"
एक विजय उत्सव
अच्छाई पे बुराई का |
या
एक शर्मसार दिन
संदेश जिसका पति से बेवफ़ाई का ||
नहीं पता मुझको
शायद तुमको भी नहीं |
ये दिन
याद दिलाता हैं मुझे
मिले जो
"दर्द"
"दर्द"
और बस दर्द
सीता को
पति से वफ़ाई पे ||
कौन था ?
असली गुनहगार
"रावण"
एक राक्षस होके
जो यूं अपनी जात दिखा पाया |
अंहकार में परस्त्री को उठा ले आया ||
या
"राम"
जो अंतर्यामी होके भी
अपनी पत्नी पे विश्वास न कर पाया |
चरित्र पे शक कर वनवास छोड़ आया ||
यूं इतने दिन
पाक चरित्र
रख के भी
क्या पाया उस बेचारी ने |
इस से अच्छा होता अगर
रावण का हाथ
थाम ली होती |
तो पूरी ज़िंदगी
रनिवासों में जी ली होती ||
पर नहीं
नहीं
उसे तो अपने
पति-परमेश्वर की पड़ी थी |
उन्हीं के संग
चलने-जीने का
संकल्प
ले चली थी ||
पर हाय रे उसकी
फूटी किस्मत ,
उस मर्यादा पुरुषोत्तम
ने मर्यादायों में
घृणा के अलावा
उसे कुछ न दिया ||
अब तुम बताओ
किसे जलाना चाहिए आज ???
उस "रावण" को
जिसने
एक अनजान औरत
के
हुस्न-प्रेम
में अंधे होकर
पूरी दुनिया को दुश्मन बना लिया |
मौत को खुद निमंत्रण थमा दिया ||
या
उस "राम" को
जिसने अपनी
तथाकथित "सब कुछ"
अर्धांगिनी
को भोग-शक का शिकार बना दिया |
पूरे जमाने में उसका परिहास बना दिया ||
|| मनसा ||
दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें

