आज मेरा फिर हसीन बचपन में जाने का मन करता हैं ।
वो झूमने , हंसने , खिलखिलाने का मन करता हैं ।।
नानी की गोद मॆं सोके लोरिया-लाड पाने को मन करता हैं ।
दादा की उंगली पकड. , वो घूम आने को मन करता हैं ।।
वो पापा की डांट पे मम्मी से शिकायत का मन करता हैं ।
इस भागदौड. की ज़िन्दगी में जो गुम सी गई ,
आज़ फिर उस मासूमियत को पाने का मन करता हैं ।।
आज मेरा फिर हसीन बचपन में जाने का मन करता हैं ।।
बारिश के पानी में कश्तियां चलाने को मन करता हैं ।
लम्बा बांस लेके उड.ती हसीन पंतगे चुराने को मन करता हैं ।।
वो हाथों पे डॉलर और झूल्ली बनाने को मन करता हैं ।
गुड्डे- गुड्डियों के खेल में उनका ब्याह रचाने को मन करता हैं ।।
बिना खलिश और मैल के होते थे दिल तब ,
आज उन खुशियों को फिर से पाने का मन करता हैं ।।
आज मेरा फिर हसीन बचपन में जाने का मन करता हैं ।।
स्कूल में दोस्तों के संग फिर धमाचौकडी मचाने को मन करता हैं ।
फिर स्कूल में मैडम को रिझाने को मन करता हैं ।।
आगे वाली छोरी की चोटी पकड. , उसे घुमाने का मन करता हैं ।
आज़ भी याद है उसके रूठने का ढंग,उसे फिर मनाने का मन करता हैं ।।
अब तो टूटे है दिल और अधूरे है सपने ,
इन्हें छोड. फिर बचपन की टूटी पेन्सिल चलाने का मन करता हैं ।।
आज मेरा फिर हसीन बचपन में जाने का मन करता हैं ।।
वो गली की आवारगी में फिर शुमार हो जाने का मन करता हैं ।
वो भोले से चेहरे पे फिर से कूची- कूची पाने का मन करता हैं ।।
हर शोख हसीना की आशिकी में फिर डूब जाने का मन करता हैं ।
वो फिर रंग - बिरंग तितलियों के पीछे भागने का मन करता हैं ।।
वो बात अलग है मैं जीता हूँ आज़ भी बचपने में ,
पर आसपास भी बचपन पाने का मन करता हैं ।।
आज मेरा फिर हसीन बचपन में जाने का मन करता हैं ।।
- मनसा
